ओडिशा की मिनी डॉल्स यानी पसापल्ली डॉल्स इस कला की पहचान मानी जाती है जो इस क्षेत्र के कल्चर विशेष को दर्शाती है। इसके अलावा अन्य पट्टचित्र पेंटिंग, ज्वेलरी बॉक्स और अन्य कई हैंडमेड बनाने के लगभग 500 ऑर्डर्स हर महीने जिस युवा आंत्रप्रेन्योर को मिलते हैं वो शाइनी खुंटिया है।
आज जब हर युवा डॉक्टर, इंजीनियर या सिविल सर्विसेस में जाने का सपना रखता है, वहीं शाइनी ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद किस तरह ओडिशा के पारंपरिक कल्चर को बढ़ावा दिया, जानिए खुद उन्हीं की जुबानी :
जॉब की तलाश शुरू की
मैं कटक की रहने वाली हूं। मैंने मेडिकेप्स यूनिवर्सिटी, इंदौर से एमबीए किया। उसके बाद जॉब की तलाश में कई मेट्रो सिटीज में रहीं। उन्हीं दिनों मुझे इस बात का अहसास हुआ कि क्यों न कोई ऐसा काम किया जाए जिससे मेरे साथ-साथ अन्य लोगों को भी रोजगार मिल सके। इसी विचार के साथ मैं अपने घर लौट आई।
मेरे इस फैसले से घर में कोई खुश नहीं था। सब यही चाहते थे कि मैं किसी मेट्रो सिटीज में रहकर जॉब करूं। लेकिन मैं उस शहर के लिए कुछ करना चाहती थी जहां मैं बचपन से रही हूं। इस शहर से मेरे जीवन की कई यादें जुड़ी हुई हैं।
फोकमेट के लिए प्रेरणा मिली
खुद्रा जिले के बालीपटना में खामंगा गांव है। मैंने देखा यहां लगभग 200 पट्टचित्र कारीगर हैं। कुशल कारीगर होने के बाद भी उन्हें अपने काम की वो कीमत नहीं मिल पाती, जिसके वे हकदार हैं। बहुत मेहनत करने के बाद भी उनकी कमाई काफी कम है। यहीं से मुझे अपने स्टार्ट अप ''फोकमेट'' के लिए प्रेरणा मिली।
मैंने 2017 में फोकमेट की शुरुआत की। मैंने देखा ऐसे कई प्रोडक्ट मार्केट में है जिनकी बिक्री काफी कम होती है। ऐसे में इस बात की जरूरत है कि अपने प्रोडक्ट को किस तरह मार्केट फ्रेंडली बनाया जाए।
अपने काम के शुरुआती दिनों में रघुराजपुर के शिल्पकारों से मिली जो पाम की पत्तियों के जरिये अपनी कला दिखाते थे। मैंने ओडिशा के बालीपटना क्षेत्र में देखा कि वहां ओडिसी आर्ट वर्क किस तरह किया जाता है।
मार्केट की रियलिटीज जानीं
मैंने बालीपटना के कारीगरों के लिए डिजाइन डेवलपमेंट प्रोग्राम ऑर्गेनाइज किया। यहीं मुझे वो मौका मिला जिसके माध्यम से मैं इन्हें जान पाई। उनके काम को पहचानने का यह सबसे अच्छा समय रहा। उनसे बातचीत के दौरान मैंने मार्केट की रियलिटीज भी जानीं।
इस प्रोग्राम की शुरुआत में कई कारीगरों द्वारा अच्छा रिसपॉन्स नहीं मिला। लेकिन धीरे-धीरे वे सभी इसमें शामिल होने लगे। आज मैं लगभग 25 कारीगरों के साथ काम कर रही हूं। वे ओडिशी मिनी डॉल्स बनाते हैं।
बॉक्स बनाने की ट्रेनिंग दी है
मैंने उन्हें ज्वेलरी और ओडिशी पट्टचित्र डिजाइन वाले बॉक्स बनाने की भी ट्रेनिंग दी है। अधिकांश महिला कारीगर इस काम को करती हैं। मैं पट्टचित्र के अलावा सौरा और गौंड आर्ट को भी मैं अपने प्रोडक्ट के जरिये लोगों के सामने लाने का प्रयास करती हूं।
मेरा अधिकांश समय इन कारीगरों को अलग-अलग प्रोडक्ट पर डिजाइन समझाने में बीतता है। ये कारीगर एक महीने में दो या तीन ओडिशी पेंटिंग बनाते हैं।
कारीगरों को रोजगार दे रही हूं
मुझे इस बात की खुशी है कि ओडिशी कला के जरिये मैं उन कारीगरों को रोजगार दे रही हूं जिनके लिए लॉकडाउन के चलते दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल था। मेरे डिजाइन किए प्रोडक्ट की डिमांड मुंबई, बेंगलुरु और अन्य मेट्रो सिटीज में भी है।
कुछ दिनों पहले राखी के मौके पर मैंने हैंड पेंटेड राखी बनाई थी। मेरे द्वारा डिजाइन की गई इन राखियों को बहुत पसंद किया गया। वैसे भी ओडिशा में कला के कद्रदानों की कमी नहीं है। यहां के आर्ट को हमारे देश के साथ ही विदेशों में सराहा जाता है।
कारीगरों को सही दिशा देती हूं
मैं चाहे एक कुशल कारीगर नहीं हूं। लेकिन मार्केट की जरूरतों के अनुसार कारीगरों को सही दिशा जरूर देती हूं। मैं इन कलाकारों को रॉ मटेरियल का सही इस्तेमाल कर यूनिक डिजाइन बनाना सीखाती हूं।
इस तरह इन्हें इनके काम का अच्छा पैसा मिल जाता है। मेरे काम से खुश होकर ये कलाकार भी हर तरह से मेरी मदद को तैयार रहते हैं।
दिल कहें, वहीं करिअर चुनें
अगर बात आज के दौर में युवाओं के करिअर की हो तो जो आपका दिल कहें, वहीं करिअर चुनें। इस तरह आप दूसरों के साथ-साथ खुश को भी खुश रख पाएंगे।
मैं ओडिशी कला के जरिये उन हजारों कारीगरों को रोजगार देना चाहती हूं जिनमें योग्यता की कमी न होने के बाद भी वे बेरोजगार हैं। मैं अपने प्रोडक्ट को एक ब्रांड के रूप में स्थापित करना चाहती हूं।
मेहनत की सही कीमत मिल सके
भारत में जिस तरह गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश के हैंडीक्राफ्ट वर्क को बढ़ावा मिला है, वैसा ओडिशी कला को नहीं मिल पाया। इसी वजह से लोग यहां के उन प्रोडक्ट के बारे में भी नहीं जानते जो ईको फ्रेंडली भी हैं।
मैं चाहती हूं इस कला के बारे में दुनिया भर के लोग जानें ताकि ओडिशी कारीगरों को अपनी मेहनत की सही कीमत मिल सके।
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