हर 48 मिनट में एक बच्ची होती है यौन शोषण का शिकार, लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव को मिटाने और उन्हें उनका हक दिलाने के लिए मनाया जाता है ये दिन https://ift.tt/34Ja0VU

लड़कियों के साथ पैदा होने से लेकर जीवित रहने तक हर स्तर पर भेदभाव किया जाता है। वे घर में रहते हुए अपने ही भाईयों के साथ बराबरी का हक पाने के लिए भी कई बार लड़ती हुई नजर आती हैं। वहीं स्कूल, कॉलेज या ऑफिस में भी उन्हें अपने छवि बनाए रखने के लिए अतिरिक्त मेहनत करने की जरूरत पड़ती है।

समाज में लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव को मिटाने और उन्हें उनका हक दिलाने के लिए हर साल 11 अक्टूबर को इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे मनाया जाता है। इसे पहली बार 2012 में मनाया गया था। लड़कियों के लिए बने इस विशेष दिन के माध्यम से उनके अधिकारों का संरक्षण करना और उनके सामने आने वाली चुनौतियों व मुश्किलों की पहचान करना है।

ऐसे हुई इस खास दिन को मनाने की शुरुआत

इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे मनाने की पहल एक गैर-सरकारी संगठन 'प्लान इंटरनेशनल' प्रोजेक्ट के रूप में की गई। इस संगठन ने "क्योंकि मैं एक लड़की हूं" नाम से एक अभियान भी शुरू किया जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने के लिए कनाडा सरकार से संपर्क किया।

फिर कनाडा सरकार ने 55वें आम सभा में इस प्रस्ताव को रखा और संयुक्त राष्ट्र ने 19 दिसंबर, 2011 को इस प्रस्ताव को पारित कर दिया। 11 अक्टूबर का दिन इसे मनाने के लिए चुना गया। पहला अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस 11 अक्टूबर, 2012 को मनाया गया जिसकी थीम "बाल विवाह का अंत करना" थी। इसमें लड़कियों के अधिकारों और दुनिया भर में लड़कियों के सामने आने वाली चुनौतियों को पहचानने के बारे में कहा गया।

आपके लिए ये जानना भी जरूरी है :

- एनसीआरबी द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर 48 मिनट में एक बच्ची यौन शोषण का शिकार होती है।

- सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम बेसलाइन सर्वे 2014 की रिपोर्ट के अनुसार, 15 से 17 साल की लगभग 16 प्रतिशत लड़कियां पढ़ाई पूरी होने से पहले ही स्कूल छोड़ देती हैं।

- यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार पिछले बीस सालों में स्कूल न जाने वाली लड़कियों की तादाद सात करोड़ 90 लाख कम हुई है।

- इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 50 साल में दुनिया में लापता लड़कियों की संख्या दोगुनी हुई है। साल 1970 में यह संख्या 6.10 करोड़ थीं और 2020 में यह बढ़कर 14.26 करोड़ पर पहुंच गई है।



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The day was started by an NGO, the United Nations passed a resolution to celebrate it and chose the day of October 11.


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